जीवन को उज्जवल बनाओ

अंधकार पहले भी , अंधकार बाद में भी| अंधकार दिन के पहले भी, अंधकार दिन के अंत में भी| अंधकार जन्म से पहले  भी, अंधकार मृत्यु की घड़ी से फिर शुरू हो जाता है| |दिन के पीछे भी अंधेरा है रात का| दिन के आगे भी अंधेरा है रात का| माँ के गर्भ में भी अंधेरा है, जहाँ से हमारे शरीर की शुरुआत हुई और जब शरीर से प्राणपखेरू निकलते हैं तो पुन: जीव अंधकार में डूबता है| रोशनी बहुत थोड़े समय को होती है और अंधकार बहुत लम्बे समय का होता है|
आँखें कम समय के लिए खुलती है, बंद अधिक देर  तक रहती हैं| जब आँखें बंद करते हैं तो अंधकार ही दिखता है| आँखें बंद की, तो अंधकार, आँखें खोली तो कुछ देर रोशनी| रोशनी भी कब तक? जब तक दिन का सूरज है| जैसे दिन का सूरज गया, तो फिर वही अंधकार|अंधकार से हमें प्रकाश की ओर अग्रसर होना है| 
परमात्मा प्रकाश स्वरूप है| लेकिन इस प्रकाश को प्रस्फुटित होने के लिए एक द्वार तो चाहिए|
अंदर आनंद का जब महा सूर्य उदय हो सकता है, तो इन बुझ जाने वाली  छोटी-छोटी चमकदार संसार की सुख की घड़ियों के पीछे अपने जीवन को अंधकार से क्यों भरना! जीवन को उज्जवल बनाओ

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