ध्यान वो होता है जो खुली आखों से दुःख, हानि, सुख, लाभ और भी इस तरह के समानार्थी और विरुद्दार्थी को देखने की क्रिया को सहजता से प्रदान करे. आखों को बंद कर ध्यान में क्षणिक विभिन्न सुखों का अहसास और विभिन्न दुखों से ध्यान द्वारा पलायन "वास्तविक ध्यान" नहीं माना जा सकता है. खुली आखो से ही ध्यान होना चाहिए.
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