रूठ के तुम तो चल दिए, अब मैं दुआ तो क्या करूँ
जिसने हमें जुदा किया, ऐसे ख़ुदा को क्या करूँ
जीने की आरज़ू नहीं, हाल न पूछ चारागर

दर्द ही बन गया दवा, अब मैं दवा तो क्या करूँ
सुनके मेरी सदा-ए-ग़म, रो दिया आसमान भी
तुम तक न जो पहुँच सके, ऐसी सदा को क्या करूँ।


हम कितने बदनसीब हैं आज ज़माने के लिए,
खुद को ज़ख्म देकर औरों को हंसाने के लिए,

हमने क्या क्या ना सहा तेरे चले जाने के बाद,
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, 
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा ना लगे ! 

तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ हमें, 
तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे ! 

हमारे प्यार से जलने लगी है ये दुनिया,
दुआ करो किसी दुशमन की बददुआ ना लगे !

ना जाने क्या है उसकी बेबाक आँखो में,
वो मुँह छुपा के भी जाये तो बेवफ़ा ना लगे !

तुझे हमेशा याद किया तुझको भुलाने के लिए 
किस लिए मोहब्बत और वफा की सदा से है दुश्मनी,
ना वफा से मोहब्बत मिलती है ना मोहब्बत से वफा ।

कौन कहता है आदमी अपनी किस्मत खुद लिखता है,
अगर यही सच है तो किस्मत में दर्द कौन लिखता है ।

जुल्फें फैला कर जब महबूबा आशिक की कब्र पर रोती है,
तब यह महसूस होता है कि मौत भी कितनी हसींन होती है।

यह मौत भी कितनी अजीब चीज़ होती है यारो,
मेरे जिस्म से उनकी खुशबू आज भी आती है,
मैंने ज़िंदगी भर सीने से लगाया था जिनको।
एक दिन मरने के लिए पूरी ज़िंदगी जीनी पड़ती 
हैमंज़िलें मुश्किल थी पर हम खोये नहीं,…
दर्द था दिल में लेकिन हम रोये नहीं,

कोई नहीं आज हमारा जो पूछे हमसे,…
जाग रहे हो किसी के लिए.या सोये नहीं!
खामोश रात में लिखी किताब का सुबह सौदा हुआ ।
बिक गये वे मेरे सभी सपने आँखों में बंद बे हिसाब, 

सूरज के ढलने के साथ ही ढल गई मेरी आत्म शक्ति,
जब बिकी वो खामोश रात में लिखी यादों की किताब !
कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़न्दगी जैसे,
तमाम उम्र मैं किसी दूसरे के घर में रहा,

तुमको घर से निकलते मिल गई मंज़िल,
और मैं बदनसीब उम्र भर सफर में रहा ।
आज ग़ुमसुम सा ये दिन कब गुज़रा पता ही ना चला,
बस खोये थे तुम्हारे ख्यालों में आज फिर रात हो गई.!

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