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Showing posts from February, 2015
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सुबह का हर पल ज़िंदगी दे आपको दिन का हर लम्हा खुशी दे आपको जहा गम की हवा छू कर भी न गुज़रे खुदा वो जन्नत से ज़मीन दे आपको... बुरा नहीं लगता... १. धैर्य और संतोष हो तो निर्धनता बुरी नहीं लगती। २. कपड़े साधारण हों पर धुले और साफ़ हों तो बुरे नही लगते। ३. भोजन भले ही मँहगा न हो पर ताजा और गरम हो तो बुरा नहीं लगता। ४. मनुष्य कुरूप हो पर अच्छे स्वभाव का हो तो बुरा नही लगता। ५. घर छोटा और साधारण हो पर साफ़ सुथरा और व्यवस्थित हो तो बुरा नहीं लगता। ६. तन स्वस्थ और मन प्रसन्न हो तो कुछ भी बुरा नहीं लगता। हर पल मे खुशी देती है मा, अपनी ज़िंदगी से जीवन देती है मा, भगवान क्या है!!! मा की पूजा करो जनाब, क्यूकी भगवान को भी जनम देती है मा…
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What are you going to do when you have done everything? What problem are you going to solve, once all your problems are solved? You don't think you'll ever reach such a point? Doesn't that imply that you'll be running around dealing with stress till the end of your time on earth? Being constantly overwhelmed is something that we simply must learn to enjoy. 'live up to their true potential'. There are some things that we simply cannot take with us across the threshold of time. Experiences, no matter how real they may seem to be in one moment, rapidly become nothing more than memories. Yet, though all things must eventually pass, it seems that some things stick around longer than we want them to. You cannot instantly leave behind all that you would like to consign to the past. Certain emotional obligations are sure to pursue you. But you can kiss goodbye to a fear that you have now outgrown.
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ज़िंदगी अब इस मोड़ पर आ कर खड़ी हो गई है , कि तू दिख कर भी दिखती नहीं है किसी को , इसीलिए कहती हूँ , उदास मत हो , क्या सोच रही है खड़ी वहां ? अंतरात्मा आवाज़ दे रही है , भीतर बुला रही है-- मैं अभी जिंदा हूँ फिर भी देख कर कोई क्यों नहीं देख रहा है मुझे , या कोई देखना ही नही चाहता ज़िंदगी में क्या खोया , क्या पाया ? हरेक की यही कहानी है,सुनना मेरी ज़ुबानी है- यह संसार है यही इसकी मा या !
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रूठ के तुम तो चल दिए, अब मैं दुआ तो क्या करूँ जिसने हमें जुदा किया, ऐसे ख़ुदा को क्या करूँ जीने की आरज़ू नहीं, हाल न पूछ चारागर दर्द ही बन गया दवा, अब मैं दवा तो क्या करूँ सुनके मेरी सदा-ए-ग़म, रो दिया आसमान भी तुम तक न जो पहुँच सके, ऐसी सदा को क्या करूँ। हम कितने बदनसीब हैं आज ज़माने के लिए, खुद को ज़ख्म देकर औरों को हंसाने के लिए, हमने क्या क्या ना सहा तेरे चले जाने के बाद, तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा ना लगे ! तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ हमें, तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे ! हमारे प्यार से जलने लगी है ये दुनिया, दुआ करो किसी दुशमन की बददुआ ना लगे ! ना जाने क्या है उसकी बेबाक आँखो में, वो मुँह छुपा के भी जाये तो बेवफ़ा ना लगे ! तुझे हमेशा याद किया तुझको भुलाने के लिए किस लिए मोहब्बत और वफा की सदा से है दुश्मनी, ना वफा से मोहब्बत मिलती है ना मोहब्बत से वफा । कौन कहता है आदमी अपनी किस्मत खुद लिखता है, अगर यही सच है तो किस्मत में दर्द कौन लिखता है । जुल्फें फैला कर जब महबूबा आशिक की कब...
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आइंस्टीन कहते थे कि ईश्वर एक्सपैंडिंग यूनिवर्स है अर्थात् यह लगातार फैलता हुआ ब्रह्मांड। लेकिन हमारा ईश्वर मूर्तियों में और मंदिरों में बंद है। या तस्वीरों में जड़ दिया गया है। हमारे लिए वह किसी खिलौने की तरह है। पुजारी और भक्त अपने इस भगवान को खिलाते हैं, उसका श्रृंगार करते हैं, उसे सुलाते हैं, पंखा करते हैं। जैसे छोटे बच्चे गुड्डे-गुड्डिओं की शादी करते हैं, उसी प्रकार ये भक्त जन भी अपने भगवान का ब्याह करते हैं, उनका जन्मोत्सव मनाते हैं वगैरह-वगैरह। हमारा ईश्वर हमारे अपने ही हाथों से बनाया हुआ है, इसलिए हम उसके साथ चाहे जो खिलवाड़ कर लें। यह ईश्वर हमारे स्वार्थों को सहारा देता है। हमारे लोभ और द्वेष का पोषण करता है। हमारा ईश्वर जनमता है और मरता है। इसीलिए एक दार्शनिक ने कहा है कि ईश्वर मर गया है, तभी तो इतने दुष्कर्म इस संसार में हो रहे हैं। आज आदमी की हालत देख कर लगता नहीं कि ईश्वर कहीं जिंदा होगा। यहां की श्रद्धा, अंधविश्वास में बदल चुकी है। इसी वजह से हम असली ईश्वर को समझ नहीं पाते। हम ईश्वर को 'मैनेजिबल' बना कर पेश करते हैं। यानी तुम हमारे फलां-फलां दुख दूर करो, फलां-...
अच्छा बनना
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अच्छा बनना मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा है। हम हर काम अच्छे से करना चाहते हैं और जब-तब उसमें पूर्णता की तलाश भी करते हैं। ऐसे लोग किसी एक चीज में पूर्णता पाना चाहते हैं, फिर जीवन के हर क्षेत्र में उसे पाने की कोशिश करते हैं। तो वह चाहता है कि काम में भी बेस्ट रहे। फिर वह अपने लुक्स और रिश्तों में वही परफेक्शन ढूंढने लग जाता है, और किसी भी स्तर पर नाकाम रहने से अंदर ही अंदर टूटने लग जाता है। मन पर बोझ पड़ने के साथ शारीरिक व्याधियां भी उसे दबोचने लगती हैं। कुछ लोग सिर्फ खुद परफेक्शनिस्ट होना चाहते हैं, जबकि कुछ आसपास के लोगों से भी वही उम्मीद करने लग जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो माता-पिता से लेकर तकरीबन पूरे समाज से ऐसी आशा करते हैं। ऐसे लोग ज्यादा समस्याग्रस्त होते हैं। शोध के अनुसार परफेक्शन पर बहुत ज्यादा जोर देने वाला व्यक्ति अनिद्रा, दिल की बीमारी और आंत संबंधी रोगों का शिकार होने के अलावा जल्द ही मृत्यु का ग्रास भी बन सकता है। इंसान को अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करते हुए किसी भी क्षेत्र में उच्चतम स्तर पाने की कोशिश जरूर करनी चाहिएi सार्थकता तभी...