तक़दीर

मुझे किसी के बदल जाने का गम नही ,
बस कोई था,
जिस पर खुद से ज्यादा भरोसा था

"उनसे कहना की "क़िस्मत" पे ईतना नाज ना करे , 
हमने "बारिश" मैं भी जलते हुए मकान देखें हैं…… 

तक़दीर का ही खेल है सब,
पर "ख़्वाहिशें है की" समझती ही नहीं

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