कुम्हारन बैठी रोड़ किनारे,*लेकर दीये दो-चार*।
जाने क्या होगा अबकी,*करती मन में विचार*।।

याद करके आँख भर आई,*पिछली दीवाली त्योहार*।
बिक न पाया आधा समान,*चढ गया सर पर उधार*।।

सोंच रही है अबकी बार,*दूँगी सारे कर्ज उतार*।
सजा रही है, *सारे दीये करीने से बार बार*।।

*पास से गुजरते लोगों को देखे कातर निहार*।
*बीत जाए न अबकी दीवाली जैसा पिछली बार*।।

नम्र निवेदन मित्रों जनों से,*करता हुँ मैँ मनुहार*।
मिट्टी के ही दीये जलाएँ,दीवाली पर अबकी बार!

Comments

Popular posts from this blog