जो नहीं कभी देखा, पर केवल उसकी बातें सुनी
कल्पना में अच्छा लगे
ईश्वर भी तो  ऐसा  ही है
वो  क्यों  नहीं अपना और प्यारा लगे
जो जिसके पास नहीं, उसके लिये  ही दौड़ लगे
पर वोह तो अनजान नहीं
तो क्या हमारी अपेक्षाएं
हमें उन से दूर करें
हम सभी तो एक ही नूर से उपजें
तो सभी रिश्तेदार  ही हैं
सभी एक ही ईश्वर के अंश
सभी का एक ही वंश
फिर भी सभी अनजान लगें
अनजान हैं तो प्यारे क्यों ना लगें
क्यों हमारा अहम प्रेम ना करने दे
क्या है हमारे पास
जो हमारा है और दूसरों से अलग करे
हम खुद से भी अनजान हैं
तो दूसरे को क्या जानें
जब हमें अपना आप प्यारा लगे
तो दूसरे सभी अनजान क्यों ना प्यारे लगें---
सामने है जो उसे , लोग बुरा कहते हैं , 
जिसको देखा ही नहीं , उसको ख़ुदा कहते हैं । 
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 ghazal by the Grt. Jagjit Singh -----

चन्द मासूम से पत्तों का लहू है ' फ़ाकिर ' ,
जाने क्यूँ लोग उसे , हाथों की हिना कहते हैं ।

चंद अल्फ़ाज़ ' नज़ीर अकबराबादी ' के ---- 
है चाह फ़क़त एक दिलबर की , फिर और किसी की चाह नहीं , 
एक राह उसी से रखते हैं , फिर और किसी से राह नहीं । 

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