आज और अभी।
संसार में रहते हुए मैं, मैं हूं और तु तू है, यह भी बोध गहरी नींद में सोए आदमी को नहीं होता। मोह, कामना, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष जैसी तमाम चीजों का अंत हो चुका होता है। गहरी नींद में आदमी आनंद की स्थिति में होता है। यही कारण है कि गहरी नींद से जागने के बाद हम तरो-ताजा महसूस करते हैं।अगर किसी को रात भर गहरी नींद न आए, उसे सबेरे देखो, वह गहरी बेचैनी से घिरा होता हैं।गहरी नींद में सोते हुए आदमी को एकात्मता को बोध होता है। गहरी नींद में हमारा जानवर होने का गुण समाप्त हो जाता है। गहरी नींद में सोते हुए आदमी का कोई अतीत नहीं होता, कोई भविष्य नहीं होता। न तो हम अतीत के लिए विह्वल होते हैं और न ही भविष्य की योजना बना रहे होते हैं।ऋषियों ने अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल कुछ इस तरह करना शुरू किया कि गहरी नींद जैसी अवस्था तो हो, लेकिन उसमें बेहोशी न हो। इसी से ध्यान की खोज हो गई। गहरे ध्यान में उतरा हुआ आदमी पूरी तरह से चैतन्य होता है। वह न तो अतीत में होता है, न ही भविष्य में। ऐसा व्यक्ति पूरी तरह से वर्तमान में जीवित रहता हैप्रेजेंट सेंटर्ड। वह विरोधाभासों से परे होता हैं। वह संसार के रिश्तों से ऊपर उठ चुका होता है। वह संप्रसाद की स्थिति में होता है। संप्रसाद में शांतिऔरआनंद का समन्वय होता है। मेरे-तेरे के भाव का अंत हो जाता है और एकात्मता का बोध होता है। निजता का बोध समाप्त हो जाता है। इसे ही नाम-रूप का अंत माना जाता है। ये उपलब्धियां ध्यान की अवस्था तक ही रहती हैं।‘ध्यान’ स्वयं को जानने का एक सशक्त माध्यम है। परम चेतना के गुप्त रहस्यों को ‘ध्यान’ के प्रकाश द्वारा जाना जा सकता इसलिए मन को निर्विषय करने का नाम ही ‘ध्यान’ है। ध्यान का अर्थ है क्रियाहीन होना।ध्यान क्रिया नहीं, अवस्था है। ध्यान में मन विषयों से विमुख होकर अपने आंतरिक केन्द्र से जुड़ जाता है। मन में उठने वाले अनेक विचार धीरे-धीरे शांत होते चले जाते हैं। जब चंचल मन शांत हो जाए, मन में कोई विचार, कोई ख्याल न रहे लेकिन जागरूकता बनी रहे वही ध्यान है। ध्यान में चेतना धीरे-धीरे अपने आनन्दमय स्वरूप में स्थापित होती जाती है। एक अलौकिक आनंद और प्रेम की अनुभूति होने लगती है। ध्यान की गहराई के लिए चित्त का शांत होना, मन का विचारों से मुक्त होना अनिवार्य है। मन को शांत, स्थिर और प्रसन्न रखना ही एक योगी का पहला कर्त्तव्य है। ऐसे शांत आनंदित चित्त में ही परमात्मा का वास होता है, उसकी कृपाएं बरसती है। जिस प्रकार एक तरंगित झील में चांद का प्रतिबिंब दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार हमारे चित्त की झील भी इतनी तरंगित है कि हर क्षण हमारे सामने मौजूद परमात्मा का स्वरूप भी हमें दिखाई नहीं देता। शांतऔरस्थिर मन से ही ध्यान में प्रवेश हो सकता है। जो ध्यानी हो जाता है वह उस परम के सौंदर्य में डूब जाता है। उसका हर क्षण मस्ती से भरा होता है। इस संसार में हमारी उन्नतिऔरपतन का कारण कोई और नहीं हमारे अपने विचार हैं।सात्विक विचार व्यक्ति को सफलता की ओर ले जाते हैं। जो साधक सर्दी-गर्मी, सुख-दु:ख, लाभ-हानि, मान-अपमान, ऊँच-नीच को समान भाव से ग्रहण करता है और अपने को सब प्रकार से जीत लेता है उस अत्यन्त शांत चित्त वाले व्यक्ति के ऊपर परमात्मा हर समय अपनी कृपाएं बरसाते हैं।जो हर परिस्थिति में सम रहते हैं, एक समान आचरण करते हैं, वे लोग साधना में शीघ्र प्रगति करते हैं।तो जीवन में होश आने लगता है। उसे हर क्षण में आनंद आने लगता है। उसका हर पल उत्सव होता है। कामना की शांति के लिए त्याग अपेक्षित है। ध्यान-योग मन को उसके विषयों से हटाकर परम चेतना की ओर मोड़ता है और तब वासना के जाल का एक-एक फंदा टूटने लगता है। इसलिए ‘ध्यान’ में जाइए स्वयं, आत्मा को समझिए। परमात्मा को जानिए क्योंकि यथा पिण्डे(शरीर) तथा ब्रह्माण्डे।
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